बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
अध्याय - 1
भारतीय ज्ञान परम्परा के अन्तर्गत आदिकालीन, मध्यकालीन हिन्दी काव्य का इतिहास एवं इतिहास लेखन की परम्परा का विकास
प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
भारतीय ज्ञान परम्परा सतत् प्रवहमान परम्परा है। किसी भी सभ्यता और संस्कृति का उत्थान- पतन उसकी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के आधार पर नहीं, ज्ञान परम्परा के आधार पर होती है। भारतीय संस्कृति और साहित्य में सदैव ज्ञान परम्परा को महत्त्व प्रदान किया गया है।
भारतीय संस्कृति
प्राचीन काल से ही हमारा देश उच्च मानवीय मूल्यों एवं विशिष्ट ज्ञान विज्ञान की परम्पराओं का देश रहा है। भारतीय संस्कृति में पूरे संसार को एक कुटुम्ब माना गया है :
"अयं निजः परोवेति गणनां लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।'
महाउपनिषद् के इस सिद्धान्त को पूरी दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में भौतिकवाद का त्याग कर भारतीय संस्कृति के ज्ञान और आध्यात्म को अपनाने पर बाध्य कर दिया है।
भारतीय ज्ञान परम्परा के स्रोत - वेद, उपनिषद्, स्मृतियाँ, पुराण इत्यादि भारतीय ज्ञान परम्परा के मुख्य स्रोत है। साहित्य भी इनसे पूर्णरूपेण जुड़ा है। ऋग्वेद हमारे साहित्य का मूल है। प्राचीन भारत ने दर्शन, ध्वन्यात्मक भाषा विज्ञान, अनुष्ठान, व्याकरण, खगोल विज्ञान, सांख्य सिद्धान्त, जीवन विज्ञान, ज्योतिष, संगीत और साहित्य जैसे विभिन्न मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर मानव प्रगति में योगदान दिया है।
ज्ञान परम्परा और साहित्य का प्रयोजन - ज्ञान परम्परा और साहित्य का मूल प्रयोजन मानव की चित्रवृत्तियों, उसके अन्तः बाह्य संघर्षों की गाथा को सरल व सुबोध भाषा में वर्णित करना, उसकी उपलब्धियों को जन-जन तक पहुँचाना, अज्ञान को मिटाकर ज्ञान के द्वारा विश्व शान्ति, प्रेम और सद्भावना की शिक्षा देना है।
भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य - भारत पृथ्वी के मानचित्र पर एक प्रायद्वीप के समान है। इसके उत्तर में हिमाच्छादित हिमालय तथा सुदूर दक्षिण में अथाह अपार सागर हिलोरे ले रहा है। जिसकी महान् संस्कृति ने वैदिक संस्कार, सदाचार एवं सुव्यवस्थित सुदृढ़ सामाजिक परम्पराओं को जन्म दिया है। सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा गुण है। जो समुद्र की भाँति अनेक नदियों की धाराओं को अपने अन्दर धारण करने की क्षमता रखती है। यहाँ अनेक जाति धर्म के लोगों ने आक्रमण दिया, किन्तु सब मिट गए और भारतीय संस्कृति एवं परम्परा आज भी अमिट है, अक्षुण्ण है। यह हमारे साहित्य की पोषक है, उसे नवजीवन प्रदान करती है। भारत की पावन भूमि पर धर्म संस्कृति और संस्कारों की अजस्र धारा प्रवाहित है, जो जनजीवन को अमृतमय जीवन प्रदान कर रही है। यहाँ के कवि लेखक 'स्वान्तः सुखाय' के साथ-साथ 'परिजन हिताय' साहित्य का सृजन करते हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रयोजन - हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन का मूल प्रयोजन साहित्य की प्रवृत्तियों एवं उसकी उपलब्धियों को जनता तक पहुँचाना है। 'इतिहास' शब्द 'इति' और 'हास' से बना है जिसका अर्थ है - 'ऐसा ही था'। यदि साहित्य के इतिहास को साहित्यिक दिग्दर्शन कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा; क्योंकि यह वर्तमान और अतीत पक्ष को उजागर करता है और हिन्दी साहित्य के इतिहास में हिन्दी का मूल उद्गम और उसके विकास को समझाता है। साहित्य का इतिहास अपने विकास क्रम का अध्ययन करता है और समाज का ध्यान केन्द्रित करता है। साहित्य का कालक्रम, नामकरण और उसमें योगदान देने वाले कवि लेखकों का सहयोग व तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन करता है, जो समाज के लिए आवश्यक है। साहित्य के इतिहास द्वारा विकास क्रम के सोपानों और स्तरों को आसानी से समझा जा सकता है। तत्कालीन कवियों की काव्य कला व भाषाशिल्प से परिचय होता है, जो आगामी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है। अतः साहित्य का इतिहास कवि एवं लेखकों की काल सम्बन्धी विवेचना करते हुए उनकी कृतियों का भी विश्लेषण करता है। अतः साहित्य के इतिहास का मूल प्रयोग न विगत युगों का साहित्यिक प्रवृत्तियों का दिग्दर्शन करना है; क्योंकि साहित्य का इतिहास मानव की चित्रवृत्तियों का चित्रण तथा समसामयिक परिवेश का विवरण प्रस्तुत करता है। जिस प्रकार समाज साहित्य को प्रभावित करता है। ठीक उसी प्रकार साहित्य भी समाज भी प्रभावित करता है। इसीलिए साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास के स्रोत - इतिहास सदैव साक्ष्य की खोज करता है। वह प्रमाणित साक्ष्य प्राप्त होने पर आगे बढ़ता है। यही उसकी आधार सामग्री है। यह साक्ष्य दो प्रकार के होते हैं। पहला अन्तः साक्ष्य और दूसरा बाह्य साक्ष्य। अन्तः साक्ष्य के अन्तर्गत उपलब्ध सामग्री में आधारभूत कृतियों एवं ग्रन्थों, कवि एवं लेखकों की फुटकर प्रकाशित-अप्रकाशित रचनाएँ होती है। बाह्य साक्ष्य के अन्तर्गत, जो तत्कालीन युग को परिलक्षित करती है। हिन्दी साहित्य में भी अन्तः और बाह्य स्रोतों के माध्यम से इतिहास लेखन प्रारम्भ हुआ। जिसमें गोकुलनाथ द्वारा रचित 'चौरासी वैष्णव की वार्ता' और 'दो सौ बावन वैष्णवन की वर्त्ताएँ, नाभादास कृत 'भक्तमाल', ध्रुवदास कृत 'भक्त नामावली' एवं 'सन्तवाणी संग्रह', भिखारीदास 'कृत 'काव्य निर्णय' तथा अन्य कृतियाँ 'कविनामावली', 'मोदतंएदानी' 'श्रृंगार संग्रह', हरिश्चन्द्र कृत 'सुन्दरी तिलक', मातादीन मिश्र का 'कवित्र रत्नाकार' में अनेक कवियों की कविताओं का परिचय मिलता है। इस प्रकार अन्तः साक्ष्य प्रकाशित-अप्रकाशित रचनाओं का संग्रह है और बाह्य साक्ष्य द्वारा इतिहासकार पैनी दृष्टि से तत्कालीन परिस्थितियों की खोज कर लेता है। कर्नल टॉड द्वारा लिखा गया राजस्थान का इतिहास में चारण कवियों का तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट में अज्ञात कवियों एवं लेखकों का परिचय मिलता है। इतिहासकारों ने हिन्दी हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज की तथा हिन्दुओं के धार्मिक दर्शन के सिद्धान्तों और ज्ञान परम्परा को निरूपित करते हुए भारतीय कवियों, लेखकों तथा आचार्यों के विचारों की समीक्षा की है। जनुश्रुतियाँ भी इतिहास लेखन का अच्छी स्रोत है। ये अनेक वर्षों तक लोगों की जिह्वा पर रहती है, धीरे-धीरे लिपिबद्ध होकर ऐतिहासिक ग्रन्थ बन जाती है। इस प्रकार एक युग की कथाएँ, घटनाएँ, दूसरे युग को हस्तान्तरित होती जाती है।
हिन्दी साहित्य इतिहास के लेखन की परम्परा - हिन्दी साहित्य में अन्तः साक्ष्यों और बाह्य साक्ष्यों से लेखन सामग्री प्राप्त हुई और विद्वानों ने इतिहास लेखन प्रारम्भ किया। हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन का सर्वप्रथम प्रयास एक फ्रेंच विद्वान गार्सा द तासी का ही माना जाता है। इन्होंने फ्रेंच भाषा में "इस्त्वार द लालितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी" ग्रन्थ लिखा। इसमें हिन्दी और उर्दू के अनेक कवियों का विवरण है। इसका प्रथम भाग 1839 में प्रकाशित हुआ। इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए शिवसिंह सेंगर ने 'शिवसिंह सरोज' नामक ग्रन्थ लिखा तथा उसमें एक हजार हिन्दी कवियों का विवरण दिया। उन्होंने कवियों के जन्म-काल तथा रचना-काल को संकेतित करने के प्रयत्न भी किए हैं। इतिहास के रूप में इसका अधिक महत्त्व नहीं है, किन्तु परवर्ती इतिहासकार सामग्री को संकलित करने में अवश्य ही इससे लाभ उठा सकते हैं।
सन् 1888 में "एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल" की पत्रिका के विशेषांक के रूप में जार्ज ग्रियर्सन द्वारा रचित "द माडर्न वर्नेक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' का प्रकाशन हुआ। इसे हिन्दी का पहला इतिहास माना जा सकता है। इसमें लेखक ने कवियों, साहित्यकारों का काल क्रमानुसार वर्गीकरण करके उनकी प्रवृत्तियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। हिन्दी साहित्य के रूप में एवं विकास के सम्बन्ध में ग्रियर्सन का दृष्टिकोण परवर्ती इतिहासकारों के लिए अनुकरणीय सिद्ध हुआ।
जार्ज ग्रियर्सन के पश्चात् 1913 ई. में मिश्र बन्धुओं द्वारा रचित 'मिश्रबन्धु विनोद' नामक इतिहास ग्रन्थ लिखा गया। यह चार भागों में विभक्त है। मिश्रबन्धुओं के द्वारा इसे व्यवस्थित इतिहास-ग्रन्थ बनाने के भरसक प्रयत्न किए गए। उन्होंने पहली बार ऐतिहासिक प्रवृत्तियों की विभिन्न अंगों पर भी प्रकाश डाला गया है। इस इतिहास को हिन्दी साहित्य का प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।